Monday, August 18, 2008
बहाने
सिटी बस के लिए निकल रहा था कि रास्ते में मित्र परमानंद राजवंशी मिल गए। प्रोफेसर हैं। कहा, कहां जा रहे हैं टहलते-टहलते। मैंने कहा बस सड़क से आटो ले लूंगा। मैंने नहीं कहा कि सिटी बस से आफिस जा रहा हूँ। इस शहर में केवल एक खास श्रेणी के लोग ही सिटी बस से यात्रा करते हैं। आज काफी भीड़ है। कई सिटी बसों को छोड़ दिया। फिर दौड़कर एक वोल्वो पकड़ी। यह सरकारी बस है। बहुत ही आरामदायक। इसमें चढ़ने में बहुत ही आसानी होती है। लेकिन यह गलत बस थी। मैंने भाड़ा चुकाया और थोड़ी ही दूर पर उतर गया। वहाँ से सही बस में बैठा। सीट के लिए युद्ध सा करते शर्म भी आती है। इसलिए जिस युवक के साथ 'युद्ध' किया था फिर सर उठाकर उसे देखा तक नहीं। मानों मैं सिटीबस की भीड़ से काफी परेशान हूँ। ग्यारह बजे के इस समय तक लोगों के शरीर से निकले पसीने से पूरी बस भर गई है। लेकिन इसका अनुभव जरूरी है। वरना आम लोगों से संपर्क ही क्या रह जाएगा।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment