Thursday, August 21, 2008

अफसरी

वह सीनियर सिटीजन की श्रेणी का व्यक्ति था। मैंने तय कर लिया कि उसके बगल की सीट खाली हुई तो मैं उसे ही बैठने के लिए कहूँगा। वह शायद कोई अफसर रहा होगा। रिटायर्ड अफसर। नख-दंत हीन अफसर। कार्यरत अफसर कभी सिटी बसों में यात्रा नहीं करते। उनके पास सरकारी या कंपनी की गाड़ी होती है। आम तौर पर अफसर अपने नौकरी काल में ही अपने लिए गाड़ी की व्यवस्था कर लेते हैं। कुछ नौकरियां इसकी मोहलत और सुविधा नहीं देती। ऐसे अफसर बाद में सिटी बसों में यात्रा करने के लिए मजबूर हो जाते हैं। उनकी मजबूरी उनके चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती है। जिस तरह उनकी अफसरी की पपड़ियां उनके चेहरे पर साफ चिपकी रहती हैं उसी तरह मजबूरी की परतें भी चिपकी रहती हैं। जब एक जगह कंडक्टर ने आवाज लगाई कि कोई उतरने वाला नहीं है चलो-चलो, तो उन सज्जन ने कहा है- है। यानी कोई सवारी उतरने वाली है। ऐसे कहकर उन्होंने मेरे अनुमान को गलत साबित कर दिया। हो सकता है वे सज्जन रिटायर्ड अफसर न हों। हमने देखा है कि कई अवकाशप्राप्त अफसर बाद में गाड़ी न होने की वजह से कहीं आना-जाना ही छोड़ देते हैं। उन्हें कभी यह खयाल नहीं आता कि लोग बिना गाड़ी के कैसे कहीं आ-जा लेते हैं।

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