Diary of a Writer
This is a literary blog about the lively experience of an Indian journalist.
Friday, November 7, 2008
मैं ही
वो मैं ही तो था
जिसके चीथड़े बटोरकर
साफ कर रहे थे तुम जमीन
मेरे ही कटे पांव को
छापा था अखबार ने
और मैं ही उसे देखकर
कांप उठा था उस रोज सुबह
मेरा ही खून बहा था
सड़कों पर
और मेरा ही खून
चढ़ रहा था बोतलों से
Tuesday, November 4, 2008
गुवाहाटी की कविता
दफ्तर से देखा कि विस्फोट का धुंआ उठ रहा है और वह मेरे भीतर जमा हो रहा है।
कितने विस्फोट हुए
खबरची पूछ रहे थे
गिनती पूरी नहीं हुई थी
मेरे अंदर विस्फोट जारी थे
इतनी बार
मरा मैं
मौके पर और अस्पताल में
कि और
मरने की
ताकत नहीं बची।
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