Tuesday, October 28, 2008

दीपावली की उदासी


हर दूसरे पर्व की तरह आज दीपावली के दिन भी मन उदास हो गया। मैंने इसका कारण खोजने की कोशिश की लेकिन खोज नहीं पाया। क्या इसका कारण यह है कि सालों से एक ही तरह की चीज में अब कोई रस नहीं रह गया। जैसे अखबारों में इस अवसर पर निकलने वाले - दिए का संदेश, अंधरे पर प्रकाश की विजय - जैसी उन्हीं उन्हीं बातों में कोई दिसचस्ली नहीं जग पाती। अब पटाखों, मिठाइयों में कहाँ से दिलचस्पी पैदा करें।

7 comments:

Anonymous said...

बिनोद जी,
दीपावली की शाम की उदासी ही होली वाले दिन भो घेर सकती थी. पर उस दिन कोई न कोई आपका प्रेमी आपको रंग से सरोबार कर देता है और आप अपने तमाम ब्याक्तिगत वर्जनाओं को तोड़ होली के हुल्लड़ में शामिल हो जाते हैं. वैसा कुछ दीपावली में नहीं हो पाता है. सवाल है त्यौहार पर खुश होने का. बचो कि आँखों में खुशी देख कर खुश होईये, देखिये कितना मजा आता है. ब्यस्त रखिये अपने आप को त्यौहार related कामो में, फिर देखिये कितना मजा आता है. आपने जो शिकायत कि है, गृहनिया (house wives) यह शिकायत कभी नहीं करती, सोचियेगा- क्यों?
O.P.Agarwalla, Guwahati

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

स्वागत इस विशाल आकाश में, आपकी उड़ान नियमित हो यही कामना है

अभिषेक मिश्र said...

anonymous की बातों पर गौर करें.शुभकामनाएं.

रचना गौड़ ’भारती’ said...

बहुत बढ़िया!!

shama said...

Swagat hai aapka, shubhkamnayon sahit !
Kabhi mere blogpebhi padharen...badee khushee hogee...mil baant le apne sukh dukh yahan, isse zyada achhee baat aur kya hogee?

रवि अजितसरिया said...

क्यों हम दीवाली को एक त्योहार के रूप मे मानते है? यह हमारी मर्यादा है, हमारी संस्कृति है. हम इसको हमरी खुशी से भी ज़्यादा मानते है. यह एक रूटीन नही है. दीवाली हुमारे लिए बहुत कुछ नया लेकर आती है. क्या घर की सफाई हमे नही बताते की दीवाली आ गयी है. एक नयी स्फूर्ति का अहसास होता है, जिसके वजह से हम अपने आपको एक ख़ुसनूमा एन्वाइरन्मेंट मे पाते है. यह स्तेरीओ टाइप नही है, महोदय .
रवि अजितसरिया

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

udasi ya basi pan kisi tyohar ya parv mer nahin hamareandar hota hai, ye parv tyohar to andar kee udasi dur kar tajgi bharne ke liye to aate hee hain
narayan narayan